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राज्यसभा में पारित होने के बाद अब महिला आरक्षण बिल को अमल में लाने की तैयारी | संविधान में संशोधन होगा लागू |

संसद में महिला आरक्षण पर चल रही 27 साल की अनिश्चितता आखिरकार गुरुवार को खत्म हो गई। पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में धमाकेदार तरीके से यह विधेयक पारित हो गया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही संविधान का यह संशोधन लागू हो जाएगा। इसके साथ ही अब लोगों का ध्यान इस बात पर है कि लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में आधी आबादी को 33 फीसदी आरक्षण का लाभ कब से मिलेगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत राजनीतिज्ञों का एक धड़ा इसमें 2029 से भी देर लगने का दावा कर रहा है।

हालांकि सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इसे 2029 तक लागू करने का पूरा प्रयास किया जाएगा। गृह मंत्री अमित शाह की संसद में की गई घोषणा के अनुसार 2024 में नई सरकार गठन के बाद यदि तत्काल जनगणना शुरू कराई गई तो अगले दो सालों में जनसंख्या का अंतरिम डाटा जारी किया जा सकता है। वहीं, संसद ने देश में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़ाने पर 2026 तक रोक लगा रखी है। ऐसे में जनसंख्या के अंतरिम आंकड़े आते ही सरकार परिसीमन आयोग का गठन कर सकती है। सामान्यत: परिसीमन में तीन से चार साल लगते रहे हैं लेकिन मोदी सरकार इसे भी दो साल में अंजाम दे सकती है।

परिसीमन में लगता है तीन साल से अधिक का वक्त
जनसंख्या के आंकड़ों के हिसाब से परिसीमन आयोग सीटों की संख्या बनाने के अलावा कुछ सीटों का पुनर्गठन करता है। इसके लिए आयोग को तीन से पांच साल का समय लगता है। साल 2002 में गठित अंतिम आयोग को अपनी रिपोर्ट देने में पांच साल का समय लगा था। इससे पहले 1952, 1962 और 1972 में गठित आयोग ने अपनी रिपोर्ट तीन से चार साल में दी थी।

विधानसभा की सीटों का हुआ था पुनर्गठन
साल 2008 में लोकसभा की जगह कुछ राज्यों की विधानसभा सीटों का आयोग ने पुनर्गठन किया था। तब विधानसभा सीटों का नए सिरे से सीमांकन करने के अलावा आरक्षित सीटों में बदलाव किया गया था। इस दौरान किसी भी राज्य में विधानसभा की सीटें नहीं बढ़ाई गई थीं।

सीटें बढ़ेंगी या मौजूदा सीटों में ही आरक्षण, तय नहीं
यह भी तय नहीं है कि भविष्य में परिसीमन के बाद विस और लोकसभा की सीटें बढ़ेंगी या फिर मौजूदा सीटों में ही एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी। सीटों की संख्या नहीं बढ़ने और जनसंख्या बढ़ने के कारण विधायक, सांसदों को पहले की तुलना में तीन से चार गुना मतदाताओं की अपेक्षाओं का सामना करना पड़ रहा है।

1971 से नहीं बढ़ी हैं सीटें
1971 के बाद से देश में लोकसभा-विधानसभा के सीटों की संख्या नहीं बढ़ी है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है। ऐसे में परिसीमन के लिए गठित किए जाने वाले किसी भी आयोग को पहले के मुकाबले अधिक मशक्कत करनी होगी।

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