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यूक्रेन में रह रहे भारतीय छात्रों की क्यूँ बढ़ गई परेशानियाँ ?

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद वहां फंसे कुछ भारतीय मेडिकल छात्रों ने आरोप लगाया है कि पोलैंड से सटे यूक्रेनी चेकपोस्ट पर उनसे दुर्व्यवहार किया गया. 

भारतीय छात्रों ने कहा कि उन्हें लगभग बंधकों जैसी स्थिति में रखा गया और जमा देने वाली ठंड में भी खाना और पानी तक के लिए तरसना पड़ा.

छात्रों का आरोप है कि उनके साथ ये बर्ताव इसलिए किया गया क्योंकि भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र में पेश किए गए प्रस्ताव पर वोटिंग से दूरी बनाई.

छात्रों ने ऐसे वीडियो भी शेयर किए हैं जिनमें सैनिकों को हवा में गोलियां चलाते और छात्रों को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग करते देखा गया है.

यूक्रेन के नागरिकों में भी नाराज़गी

एक अन्य वीडियो क्लिप में एक यूक्रेनी गार्ड एक भारतीय लड़की को दूर धकेलता दिखता है. ये लड़की सैनिक के पैरों में गिरकर उनसे सीमा पार करने देने की गुहार लगा रही है. कुछ छात्रों का कहना है कि यूक्रेन के लोग भी अब उनके विरोधी हो गए हैं.

यूक्रेन में छिड़ी जंग के बाद सैकड़ों भारतीय छात्रों को वहां से निकाल कर भारत लाया गया है, लेकिन अभी भी वहां की अलग-अलग यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ने गए हज़ारों छात्र पोलैंड से सटी सीमा पर फंसे हैं.

युद्ध से बचने के लिए बहुत से छात्र ट्रेन, गाड़ी या बस से वहां तक पहुंचे हैं. कुछ छात्र तो मीलों दूर पैदल सफ़र करते हुए बस इस आस में सीमा तक पहुंचे हैं कि किसी तरह उन्हें दूसरे देश में प्रवेश मिल जाए.

इंडो-पॉलिश चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के उपाध्यक्ष अमित लाथ के मुताबिक़, रविवार दोपहर तक 250 से भी कम भारतीय छात्र यूक्रेन की सीमा पार कर पोलैंड पहुंच सके हैं. अमित लाथ पोलैंड में भारतीय दूतावास के साथ मिलकर भारतीय छात्रों के बचाव कार्य में जुटे हुए हैं. पोलैंड में इन छात्रों को होटल में रखा जा रहा है. अमित लाथ कहते हैं कि उन्हें अभी भी यूक्रेन में फंसे हज़ारों छात्रों की चिंता है.

पूर्वी यूरोप क्यों है भारतीय मेडिकल छात्रों की पसंद?

रूस के हमले से यूक्रेन में फंसे अधिकांश भारतीय छात्र वहां मेडिकल की पढ़ाई करते हैं. यूक्रेन के साथ ही रोमानिया और बुल्गारिया जैसे अन्य पूर्वी यूरोपीय देश मेडिकल की पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की पसंदीदा जगहें हैं. अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्स्प्रेस ने इस ख़बर को विस्तार से बताया है कि आख़िर छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए इन देशों को क्यों चुनते हैं.

दरअसल, इन देशों के कॉलेजों में दाख़िले के लिए नियम काफ़ी आसान हैं. यहां भारत की तुलना में प्रतिस्पर्धा भी कम है और साथ में यूरोप में मेडिकल की पढ़ाई भारत से सस्ती पड़ती है.

हालांकि, इन देशों के कॉलेजों से मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद भारत में प्रैक्टिस करना चुनौतीपूर्ण है.

विदेशी मेडिकल संस्थानों से स्नातक करने वाले सभी छात्रों को भारत में प्रैक्टिस करने या फिर आगे की पढ़ाई करने से पहले एक लाइसेंस परीक्षा देनी होती है. इस परीक्षा को फ़ॉरेन मेडिकल ग्रैजुएट एग्ज़ामिनेशन (FMGE) कहा जाता है और इसमें पास होने वालों की दर भी बेहद कम होती है.

जो लोग भारत में मेडिकल शिक्षण संस्थानों की निगरानी करने के लिए बनी एजेंसियों में काम करते हैं, उनका कहना है कि अंग्रेज़ी में विदेशी छात्रों को यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करवाने वाली यूनिवर्सिटी में दाख़िले के लिए कोई तय नियम नहीं है. साल 2018 के बाद से भारत ने एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों के लिए भी नीट-यूजी की परीक्षा को अनिवार्य कर दिया था.

भारत में मेडिकल शिक्षण संस्थानों की निगरानी करने वाली एजेंसी के साथ काम कर चुके एक वरिष्ठ डॉक्टर कहते हैं, “अगर आप पूर्वी यूरोपीय देशों, रूस या चीन जाने वाले छात्रों को देखेंगे तो उनमें से अधिकांश को नीट-यूजी में 20 प्रतिशत से भी कम अंक आते हैं. भारत में निजी कॉलेजों तक के लिए कट-ऑफ़ क़रीब 60 प्रतिशत के आसपास है.”

भारत में महंगी है मेडिकल की पढ़ाई

यूक्रेन में क़रीब छह साल की एमबीबीएस पढ़ाई पूरी करने में 15 से 20 लाख़ रुपये का ख़र्च आता है. वहीं, भारत में निजी कॉलेजों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए 50 लाख से डेढ़ करोड़ रुपये तक ख़र्च करने पड़ते हैं. यहां ये पढ़ाई कम समय में पूरी होती है.

यूक्रेन की यूनिवर्सिटी चुनने के पीछे एक और कारण ये है कि यहां विश्वविद्यालय यूरोपियन क्रेडिट सिस्टम पर चलते हैं. इससे छात्रों के लिए कोर्स के दौरान यूरोप में अपने संस्थान बदलना आसान होता है.

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