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दिल्ली NCR में पिछले 8 वर्षों में शुरूआती ठण्ड में रहा सबसे कम प्रदूषण |

दिल्ली एनसीआर में इस वर्ष ठंड के इस सीजन के शुरुआती दिनों में प्रदूषण कम रहा है। खास तौर पर दिल्ली में इस साल अक्टूबर व नवंबर में पिछले आठ वर्षों की तुलना में प्रदूषण का स्तर कम रहा है। एनसीआर के अन्य शहरों में भी पिछले तीन वर्षों की तुलना में प्रदूषण काम रहा है। सीएसई (सेंटर फार साइंस एंड एनवायरनमेंट) के एक विश्लेषण में यह दावा किया गया है। फिर भी दिल्ली एनसीआर में सबसे अधिक प्रदूषित रही।

सीएसई के इस विश्लेषण के अनुसार अक्टूबर के शुरुआती दो सप्ताह में पांच दिन हवा की गुणवत्ता अच्छे श्रेणी में दर्ज की गई, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक है। पिछले वर्ष की तुलना में पराली जलाने की घटनाएं आधी रहीं। इस वजह से दिल्ली धुएं के चेंबर में तब्दील नहीं हुई। अक्टूबर माह में बारिश के कारण भी प्रदूषण कम हुआ।

स्मॉग भी नहीं छाया, तीन दिन हवा भी नहीं रही खराब

सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले आठ वर्षों में इस बार अक्टूबर व नवंबर में दिल्ली में पीएम-2.5 का औसत स्तर सबसे कम रहा। इस बार एक बार भी ऐसा नहीं हुआ जब कई दिनों तक लगातार तक वातावरण में स्माग छाया रहा हो। लगातार तीन दिन तक हवा गंभीर श्रेणी में रहने की घटना भी नहीं हुई।

पिछले वर्ष की तरह अब बढ़ सकता है प्रदूषण

सीएसई की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च एंड एडवोकेसी) अनुमिता राय चौधरी ने कहा कि इस बार सर्दी का सीजन शुरू होने के शुरुआती दिनों में भले ही प्रदूषण कम रहा लेकिन स्थानीय कारणों से बाद में प्रदूषण का स्तर बढ़ सकता है। पिछले वर्ष भी ऐसा हुआ था।

इसलिए प्रदूषण को स्तर को संतोषजनक स्तर पर लाने के लिए वाहनों से निकलने वाले धुएं, औद्योगिक इकाइयों, पावर प्लांट, कूड़ा जलाने, धूल के स्रोतों व घरों में इस्तेमाल होने वाले प्रदूषण युक्त ईंधन जैसे स्थानीय स्रोतों पर वर्ष भर सख्ती जरूरी है।

विश्लेषण में सामने आए तथ्य

दिल्ली के 37 वायु गुणवत्ता नियंत्रण केंद्रों के डाटा के अनुसार अक्टूबर-नवंबर में पीएम-2.5 का औसत स्तर 142 माइक्रोग्रम प्रति घन मीटर रहा, जो वर्ष 2018 की तुलना में करीब 15 प्रतिशत कम है। वहीं वर्ष 2016 की तुलना में इस बार पीएम-2.5 का स्तर 38 प्रतिशत कम रहा। नासा के वीआइआइआरएस सेटेलाइट द्वारा ली गई तस्वीरों के अनुसार इस साल अक्टूबर व नवंबर में पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में पराली जलाने की 54,391 घटनाएं और नासा के एमओडीआइएस सेटेलाइट द्वारा ली गई तस्वीरों के अनुसार पराली जलाने की 11,824 घटनाएं दर्ज हुई, जो पिछले वर्ष की तुलना में 37 प्रतिशत व 42 प्रतिशत कम है।

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