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दिल्ली हाई कोर्ट ने की जूही चावला की याचिका ख़ारिज. लगाया 20 लाख का जुर्माना

जूही चावला ने 31 मई को दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इंडिया में टेलिकॉम कंपनियों को 5G ट्रायल करने से रोकने की मांग की थी. 04 जून को कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने याचिका को बिना किसी ठोस कारणों के साथ लगाई गई याचिका बताया. जस्टिस जेआर मिधा की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि कोर्ट आने से पहले जूही को सरकार का रुख करना चाहिए था. कोर्ट ने जूही समेत बाकी याचिककर्ताओं पर 20 लाख रुपए का जुर्माना भी लगा दिया. कहा कि ये याचिका सिर्फ पब्लिसिटी के लिए दायर की गई.

जूही ने सोशल वर्कर्स वीरेश मलिक और टीना वाच्छानी के साथ मिलकर 31 मई को याचिका दायर की थी. याचिका के अनुसार जूही का कहना था कि 5G आने के बाद इंटरनेट स्पीड के साथ रेडिएशन भी सौ गुना बढ़ जाएगा. 24 घंटे, 12 महीने, 365 दिन हम रेडिएशन में रहेंगे. कोई भी इंसान, जानवर, पेड़ पौधे, चिड़िया, जीव, जन्तु इससे बच नहीं पाएगा. जूही के मुताबिक़ 5G प्लान से समस्त धरती के पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है. अपना पक्ष रखते हुए उन्होंने एक स्टेटमेंट भी जारी किया था. कहा था,

हम टेक्नोलॉजी के खिलाफ़ नहीं हैं. बल्कि हमें तो लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के डिवाइस इस्तेमाल करने में मज़ा आता है. जिसमें वायरलेस कम्युनिकेशन भी शामिल है. लेकिन इन लेटेस्ट उपकरणों के इस्तेमाल के साथ ही हम लगातार इससे होने वाले खतरों को लेकर एक असमंजस में भी बने रहते हैं. जब हमनें इन उपकरणों और नेटवर्क टावर्स से निकलने वाली रेडिएशन के बारे में रिसर्च की, तब हमें कई पर्याप्त कारण मिले जो ये साबित करते हैं कि रेडिएशन लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है.

कोर्ट ने इस याचिका पर 02 जून को सुनवाई भी की थी. जहां कोर्ट ने इसे ‘डिफेक्टिव’ बताया था. साथ ही कहा था कि ये सिर्फ मीडिया पब्लिसिटी के लिए दायर की गई है. कोर्ट ने जूही से सवाल भी किया था. कि यदि आपको टेक्नोलॉजी से दिक्कत थी तो आपने पहले सरकार से बात करना सही क्यों नहीं समझा. ऐसे मामले में सीधा कोर्ट को क्यों अप्रोच किया.

कोर्ट ने कहा था कि जूही को अपने अधिकारों के लिए पहले सरकार के पास जाना चाहिए था. अगर वहां उनकी बात नहीं सुनी जाती, तब उन्हें कोर्ट आना चाहिए था. वहीं, जूही की याचिका के जवाब में प्राइवेट टेलिकॉम कंपनियों की ओर से कहा गया था कि इंडिया में 5G टेक्नोलॉजी लॉन्च करना सरकारी पॉलिसी है. चूंकि ये एक पॉलिसी है, इसलिए इसे गलत एक्ट करार नहीं दिया जा सकता. कोर्ट ने इसके बाद अपना फैसला रिज़र्व कर लिया था.

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