चीन के वुहान शहर में पहली बार कोविड-19 का पता चलने के डेढ़ साल के बाद भी यह सवाल रहस्य बना हुआ है कि आख़िर पहली बार इसका वायरस कहां और कैसे सामने आया?
पहले यह दावा किया जा रहा था कि ये वायरस चीन की एक प्रयोगशाला से लीक हुआ है. कइयों ने इस थ्योरी को साज़िश करार दिया और कहा कि इसमें दम नहीं है.
लेकिन अब एक बार फिर इस विवादास्पद दावे को बल मिलने लगा है कि कोरोना वायरस चीन के वुहान की एक प्रयोगशाला से ही लीक हुआ है.
फ़िलहाल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तुरंत एक जाँच का ऐलान किया है जो यह पता लगाएगी कि आख़िर यह वायरस कहाँ से आया. क्या यह चीन की वुहान प्रयोगशाला से लीक हुआ है या कहीं और से आया है? उन्होंने 90 दिनों के भीतर जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा है.
कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर किस तरह की थ्योरी हैं और आख़िर यह बहस क्यों मायने रखती है.
क्या है वुहान लैब-लीक थ्योरी?
फ़िलहाल यह शक जताया जा रहा है कि कोरोना वायरस मध्य चीन के शहर वुहान की एक प्रयोगशाला से दुर्घटनावश निकल गया होगा.
वुहान में ही पहली बार इस वायरस का पता चला था. इस लीक थ्योरी के समर्थकों के मुताबिक़ चीन में एक बड़ा जैविक अनुसंधान केंद्र है.
वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी नाम की इस संस्था में चमगादड़ में कोरोना वायरस की मौजूदगी पर दशकों से शोध चल रहा है. वुहान की यह प्रयोगशाला हुआनन ‘वेट’ मार्कट (पशु बाज़ार) से बस चंद किलोमीटर दूर है. इसी वेट मार्केट में पहली बार संक्रमण का पहला कलस्टर सामने आया था.
जो लोग प्रयोगशाला से वायरस लीक होने की थ्योरी का समर्थन कर रहे हैं, उनका मानना कि कोरोना वायरस यहां से लीक होकर वेट मार्केट में फैल गया होगा. बहुतों का मानना है कि यह चमगादड़ से हासिल किया गया असली वायरस होगा. इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया होगा.
यह विवादास्पद थ्योरी कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में सामने आई और इसे तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हवा दी. कइयों का कहना था कि एक जैविक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए ही कोरोना वायरस में परिवर्तन किया गया होगा.
उस वक्त मीडिया और राजनीतिक दुनिया के लोगों ने इसे कोई साज़िश नहीं माना. लेकिन कइयों ने कहा कि इस आशंका पर ग़ौर करना होगा. इन तमाम विरोधी थ्योरी के बावजूद हाल के कुछ हफ्तों में अब इस आशंका को फिर से बल मिलने लगा है कि कोरोना वायरस किसी प्रयोगशाला से लीक हुआ है.
लैब-लीक थ्योरी फिर क्यों उभर आई है?
सवाल यह है कि आख़िर क्यों एक बार फिर ज़ोर-शोर से यह आशंका जताई जा रही है कि वायरस, चीन की प्रयोगशाला से लीक हुआ.
दरअसल अमेरिकी मीडिया में इस मामले पर छपी हालिया रिपोर्टों ने लैब-लीक थ्योरी को फिर से उभारा है.
पहले जो वैज्ञानिक लैब लीक थ्योरी को उतना पुख्ता नहीं मान रहे थे और इस पर संदेह जता रहे थे वे भी अब इस पर खुल कर बोलने लगे हैं.
अमेरिकी इंटेलिजेंस की एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 नवंबर में वुहान की प्रयोगशाला में काम करने वाले तीन रिसर्चरों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
यह मामला शहर के लोगों के वायरस से पहली बार संक्रमित होने से ठीक पहले का है. इस सप्ताह यह स्टोरी अमेरिकी मीडिया में घूम रही थी.
इन रिपोर्टों में कहा गया है कि डोनाल्ड ट्रंप के निर्देश पर अमेरिकी विदेशी विभाग ने लैब लीक थ्योरी की जाँच शुरू थी लेकिन उसे मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने बंद करा दिया था.
रिपोर्ट के मुताबिक़, ट्रंप के चीफ़ मेडिकल एडवाइज़र एंथनी फ़ाउची ने 11 मई को अमेरिकी सीनेट के सामने कहा था कि “वायरस के प्रयोगशाला से लीक होने की आशंका हो सकती है. मैं पूरी तरह यह पता लगाने के समर्थन में हूँ कि क्या सचमुच ऐसा हुआ होगा?”
राष्ट्रपति बाइडन अब कह रहे हैं कि उन्होंने पद संभालते ही इस बात की रिपोर्ट माँगी थी कि कोविड-19 का वायरस पहली बार कहाँ से फैला.
इसमें यह पता लगाने को भी कहा गया था कि यह वायरस मानव संक्रमण से आया या फिर संक्रमित जानवरों से, या फिर किसी प्रयोगशाला से दुर्घटनावश लीक हो गया.
मंगलवार को ट्रंप ने न्यूयॉर्क पोस्ट को एक ई-मेल बयान भेजकर वायरस की उत्पत्ति पर नए सिरे से जगी दिलचस्पी का श्रेय लेना चाहा.
उन्होंने लिखा, “मैं इस बारे में पहले से स्पष्ट था कि वायरस प्रयोगशाला से लीक हुआ है लेकिन हमेशा की तरह मेरी बुरी तरह आलोचना हुई. अब सब लोग कह रहे हैं ट्रंप ठीक कह रहे थे.”
वैज्ञानिक क्या मनते हैं?
वैज्ञानिकों के बीच इस मुददे को लेकर भारी बहस छिड़ी हुई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की जाँच को इस रहस्य से पर्दा उठाना था. लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह जाँच जवाब से ज़्यादा सवाल पैदा करती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से नियुक्त वैज्ञानिकों की एक टीम इस साल की शुरुआत में इसकी जाँच के लिए वुहान पहुँची थी कि कोरोना वायरस यहीं से फैला या नहीं
टीम ने वहाँ 12 दिन बिताए और वुहान की प्रयोगशाला का दौरा भी किया. इसके बाद विज्ञानिकों ने कहा कि लैब लीक थ्योरी सच हो, इसकी संभावना कम लगती है.
अब इस टीम के निष्कर्षों पर कइयों ने सवाल उठाए हैं. वैज्ञानिकों के एक प्रमुख दल ने लैब लीक थ्योरी को पर्याप्त तौर पर गंभीरता से ना लेने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट की आलोचना की है.
डब्ल्यूएचओ की कई सौ पन्नों की रिपोर्ट में कुछ ही पन्नों में लैब लीक थ्योरी को ख़ारिज कर दिया गया है.
रिपोर्ट की आलोचना करने वाले वैज्ञानिकों ने साइंस मैग्ज़ीन में लिखा, “जब तक हमें पर्याप्त आंकड़े नहीं मिल जाते तब तक हमें इन दोनों अवधारणाओं गंभीरता से लेना होगा कि यह वायरस प्राकृतिक तौर पर और प्रयोगशाला, दोनों से फैल सकता है.”
और इस बीच विशेषज्ञों में इस बात को लेकर सहमति बढ़ने लगी है कि प्रयोगशाला से वायरस के लीक होने के सवाल पर ज़्यादा गंभीरता से ग़ौर किया जाना चाहिए.
यहाँ तक कि डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर-जनरल डॉक्टर टेड्रोस एडहॉनम गिब्रयेसुस ने भी नई जाँच की बात कही. उन्होंने कहा, “सभी अवधारणाएं खुली हुई हैं और इनका अध्ययन किया जाना चाहिए.”
अब डॉक्टर फ़ाउची भी कह रहे हैं कि उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं है कि यह वायरस प्राकृतिक रूप से फैला है. एक साल पहले उनका यह नज़रिया नहीं था. उस वक़्त उनका यह सोचना था कि यह वायरस जानवर से मानव में संक्रमित हुआ होगा.
चीन का इस मामले में क्या कहना है?
कोरोना वायरस के प्रयोगशाला से लीक होने से जुड़े बयानों पर चीन ने पलटवार किया है.
चीन ने कहा है कि यह उसे बदनाम करने का अभियान है. उसका कहना है कि कोरोना वायरस चीन में किसी दूसरे देश से भोजन लेकर आने वाले जहाज़ों से फैला होगा.
चीन ने अपने यहाँ की सुदूर खदानों से चमगादड़ों से इकट्ठा किये गए सैंपलों पर हुई रिसर्च की ओर ध्यान दिलाया है. यह रिसर्च चीन के एक प्रमुख वायरोलॉजिस्ट ने की है.
चीन की वेटवुमन के नाम से मशहूर वॉयरोलॉजिस्ट प्रोफ़ेसर शी ज़ेंग्ली ने पिछले सप्ताह एक नई रिसर्च प्रकाशित की है. इसमें कहा गया है कि उनकी टीम ने 2015 में चीन की एक खदान में मौजूद चमगादड़ों में कोरोना वायरस की आठ प्रजातियों की पहचान की थी.
इस रिसर्च पेपर के मुताबिक़, उनकी टीम ने खदान में जो कोरोना वायरस पाए थे उनकी तुलना में पैंगोलिन में पाए गए कोरोना वायरस इंसान के लिए फ़िलहाल ज़्यादा ख़तरनाक हैं.
चीन के सरकारी मीडिया ने आरोप लगाया है कि अमेरिकी और दूसरे पश्चिमी देशों का मीडिया इस बारे में अफ़वाह फैला रहा है.
चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के अख़बार ‘ग्लोबल टाइम्स’ के एक संपादकीय के मुताबिक़ चीन में आम लोगों की राय है कि कोरोना के स्रोत के सवाल पर अमेरिका पर पागलपन सवार हो जाता है. इसकी जगह चीन एक दूसरी थ्योरी पर ज़ोर दे रहा है. उसका कहना है कि वुहान में यह वायरस चीन के किसी दूसरे हिस्से या किसी दक्षिण पूर्वी एशियाई देश से फ्रोज़न मीट के ज़रिये आया होगा.
क्या वायरस के स्रोत से जुड़ी एक और थ्योरी भी है?
हाँ, वायरस को लेकर एक और थ्योरी चल रही है. इसे ‘नैचुरल ऑरिजिन’ थ्योरी कहा जा रहा है.
इसके मुताबिक़ यह वायरस प्राकृतिक तौर पर जानवरों से फैलता है. इसमें किसी वैज्ञानिक या प्रयोगशाला का हाथ नहीं होता.
नैचुरल ऑरिजिन थ्योरी की अवधारणा कहती है कि कोविड-19 पहले चमगादड़ों में उभरा फिर इसका संक्रमण मानवों में फैल गया. बहुत संभव है कि यह किसी दूसरे जानवरों या ‘इंटरमीडियरी होस्ट’ से फैला हो.
इस अवधारणा का डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में भी समर्थन किया गया है. इसमें कहा गया है कि ‘ऐसा होने की काफ़ी संभावना’ है कि कोविड किसी इंटरमीडिएट होस्ट (बीच की किसी कड़ी) के ज़रिये मानव में संक्रमित हुआ हो.
इस अवधारणा को महामारी की शुरुआत में काफ़ी मान्यता मिली थी. लेकिन इतना समय बीतने के बावजूद वैज्ञानिकों को चमगादड़ या किसी दूसरे जानवर में ऐसा कोई वायरस नहीं मिल पाया जिसकी जेनेटिक बुनावट कोविड-19 से मिलती है. इससे इंटरमीडियरी होस्ट की थ्योरी पर शक़ होने लगा.
संक्रमण का स्रोत जानना इतना ज़रूरी क्यों है?
कोविड-19 ने दुनिया भर में भारी तबाही मचाई है. अब तक इससे 35 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.
अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि दोबारा ऐसा ना हो इसके लिए यह समझना बेहद अहम है कि आख़िर ये वायरस कहाँ से और कैसे आया?
अगर ‘ज़ूनॉटिक थ्योरी’ यानी जानवरों से संक्रमण फैलने की थ्योरी सही साबित हुई तो इससे फ़ार्मिंग और वन्य-जीव दोहन से जुड़ी गतिविधियों पर काफ़ी असर पड़ सकता है.
इसका असर दिखने भी लगा है. डेनमार्क में मिंक फ़ार्मिंग से वायरस फैलने के डर से लाखों मिंक मारे जा रहे हैं.
लेकिन अगर फ्रोज़न फूड और प्रयोगशाला से वायरस लीक होने की थ्योरी सही निकली तो वैज्ञानिक शोधों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर इसका गहरा असर पड़ेगा.
अगर यह थ्योरी सही साबित हुई तो ये चीन के बारे में दुनिया के नज़रिये को भी काफ़ी हद तक प्रभावित करेगा.
चीन पर पहले से ही कोरोनावायरस से जुड़ी शुरुआती महत्वपूर्ण जानकारियों को छिपाने के आरोप लग रहे हैं.
इसने चीन और अमेरिका के रिश्तों को भी ज़्यादा तनावपूर्ण बना दिया है.
वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल के फ़ेलो जेमी मेट्ज़ल ने बीबीसी से कहा कि इस मामले में चीन पहले दिन से बड़े पैमाने पर तथ्यों को छिपाने की कोशिश में लगा हुआ है.
जेमी मेट्ज़ल शुरू से ही लैब-लीक थ्योरी की जाँच की माँग कर रहे हैं. उनका कहना है कि “लैब-लीक थ्योरी से जुड़े सुबूत बढ़ते जा रहे हैं. लिहाज़ा हमें इस अवधारणा के आधार पर पूरी तरह जाँच की माँग करनी चाहिए. लेकिन कुछ दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि चीन पर उंगली उठाने की ज़ल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.
सिंगापुर के नेशनल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के प्रोफ़ेसर डेल फ़िशर ने बीबीसी से कहा, “हमें इस मामले में थोड़ा धैर्य रखने की ज़रूरत है. लेकिन इसमें डिप्लोमैटिक भी होना पड़ेगा. चीन की मदद के बग़ैर हम यह जाँच नहीं कर सकते कि यह संक्रमण कहाँ से और कैसे आया? इसके लिए ऐसा माहौल बनना ज़रूरी है जिसमें आरोप-प्रत्यारोप ना हो.