पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार, 5 जुलाई को हरियाणा में बिना स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट (SLC) के सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने के फैसले पर रोक लगा दी. सरकार ने लॉकडाउन के दौरान छात्रों के बिना स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट के निजी स्कूल छोड़कर सरकारी स्कूल में दाखिला लेने का प्रावधान किया था.
दूसरी तरफ, हरियाणा में कथित तौर पर कोरोना महामारी के दौरान 12.5 लाख छात्र-छात्राएं प्राइवेट स्कूल एजुकेशन से बाहर हो गए हैं. कहा जा रहा है कि इनमें से अधिकांश पढ़ाई छोड़ चुके हैं. वहीं कुछ सरकारी स्कूलों में चले गए हैं. जहां एजुकेशन का खर्च कम है. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी संख्या में ड्रॉप-आउट को ढहती ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में देखा जाना चाहिए.
वापस याचिका पर लौटते हैं
याचिकाकर्ता सर्व हरियाणा प्राइवेट स्कूल ट्रस्ट ने अपने वकील पंकज मैनी के माध्यम से निदेशालय स्कूल शिक्षा (डीएसई-माध्यमिक) और हरियाणा सरकार के आदेश के खिलाफ एक याचिका दायर की थी. आदेश में कहा गया था कि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट (एसएलसी) जारी हुए बिना ही सरकारी स्कूलो में एडमिशन ले सकते हैं.
डीएसई, हरियाणा ने अपने आदेश में निर्देश दिया था कि सरकारी स्कूलों में प्रवेश पाने के इच्छुक छात्रों को तुरंत प्रवेश दिया जाए. आदेश के मुताबिक, जिन सरकारी स्कूलों में छात्रों को प्रवेश दिया जाता है, वे प्रवेश के संबंध में निजी स्कूल को लिखित सूचना जारी करेंगे. और 15 दिनों के भीतर ऑनलाइन एसएलसी जारी करने का अनुरोध करेंगे. यदि 15 दिनों के भीतर एसएलसी प्राप्त नहीं होता है, तो यह माना जाएगा कि एसएलसी जारी किया गया है, और बच्चे नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुपालन के अनुसार सरकारी स्कूलों में दाखिला ले सकेंगे.
सरकार के इस कदम के खिलाफ याचिका दायर करने वाले सर्व हरियाणा प्राइवेट स्कूल ट्रस्ट ने हाईकोर्ट को बताया कि लॉकडाउन के दौरान कई ऐसे छात्र थे, जिन्होंने निजी स्कूल छोड़कर सरकारी में जाने का फैसला लिया. कोर्ट को बताया गया कि इन छात्रों ने मार्च 2020 से सरकारी स्कूलों में दाखिले की तिथि तक की बकाया राशि का भुगतान तक नहीं किया. याची ने कहा कि इस प्रकार तो स्कूलों की आर्थिक स्थिति और अधिक बिगड़ जाएगी.
याचिकाकर्ता ट्रस्ट के वकील ने तर्क दिया कि हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा पारित आदेश पूरी तरह से हरियाणा शिक्षा संहिता का उल्लंघन है. कोई भी मान्यता प्राप्त स्कूल किसी अन्य मान्यता प्राप्त स्कूल के छात्र को स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र के बिना प्रवेश नहीं दे सकता है.
याचिकाकर्ता का कहना था कि लोग बिना लंबित राशि का भुगतान किए बच्चों का प्रवेश निजी स्कूलों से सरकारी में करवा रहे हैं. इस पर रोक लगाई जाए. इस अपील पर हाईकोर्ट ने सरकार के आदेश पर रोक लगाते हुए उसे नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, मामले की अगली सुनवाई 28 अक्टूबर को होगी.
एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं?
हरियाणा विद्यालय अध्याक संघ के कृष्ण नैन ने दी लल्लनटॉप को बताया कि पिछले साल कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन लग गया. इससे लोगों की इनकम कम हो गई या खत्म ही हो गई. निजी स्कूलों की फीस काफी ज्यादा थी. बच्चों के माता-पिता ये फीस नहीं दे पा रहे थे. ऐसे में प्राइवेट स्कूलों के बच्चे सरकारी स्कूलों में दाखिले के लिए गए. सरकार ने भी आदेश जारी किया कि अगर कोई स्कूल 15 दिनों में स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट (SLC) नहीं जारी करेगा तो 15 दिन बाद इसे जारी मान लिया जाएगा. इस आदेश के एक हफ्ते में ही लाखों बच्चे प्राइवेट से सरकारी स्कूलों की तरफ चले गए. इसके बाद प्राइवेट स्कूलों में हड़कंप मचा. उन्होंने विरोध किया तो सरकार ने आदेश वापस ले लिया.
लेकिन इस साल कोरोना की लहर आने के बाद एक बार फिर वही समस्या आई. सरकार ने एक बार फिर उसी तरह का आदेश जारी किया और प्राइवेट स्कूल फिर इसके खिलाफ कोर्ट चले गए. अब कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया है. इस कृष्ण नैन ने कहा,
अब एक तरह से बच्चों का डबल एडमिशन है. प्राइवेट में भी और सरकारी में भी. देखिए क्या फैसला आता है. लेकिन जो भी हो रहा है अच्छा नहीं हो रहा है.
हमने एजुकेशन एक्टिविस्ट और एडवोकेट अशोक अग्रवाल से भी बात की. उनका कहना है,
सरकार ने देखा कि स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट की समस्या होती है. इसलिए सरकार ने आदेश निकाल दिया. दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही इस मामले में आदेश दे चुका है कि कोई स्कूल फीस नहीं जमा होने की वजह से टीसी नहीं रोक सकता. स्कूल एजुकेशन हर बच्चे का बेसिक राइट है. कागज नहीं होने की वजह से किसी का एडमिशन नहीं रोक सकते. ऐसा करने पर बच्चा एजुकेशन से ही बाहर हो जाएगा. राइट टू एजुकेशन एक्ट भी कहता है कि आप किसी बच्चे के दाखिले से मना नहीं कर सकते. हाईकोर्ट के स्टे के खिलाफ सरकार को कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए. जरूरत पड़े तो सुप्रीम कोर्ट जाएं. किसी को बच्चे के पढ़ने के लिए किसी कागज की जरूरत नहीं है.
अशोक अग्रवाल ने कहा कि जहां तक स्कूल फीस बकाए कि बात है तो कोर्ट भी आदेश दे चुका है कि स्कूलों को इस तरह के मामले में सिविल मुकदमा करना चाहिए, लेकिन बच्चे का एडमिशन नहीं रोक सकते.
हमने इस मुद्दे पर National Independent Schools Alliance NISA के प्रेसिडेंट और हरियाणा प्राइवेट स्कूल ट्रस्ट के अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा से भी बात की. उन्होंने भी सरकार के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है. उनका कहना है,
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने कहा था कि जो पैरेंट्स फीस देने में सक्षम नहीं हैं उनके बच्चों का नाम न काटा जाए. कोर्ट के इन फैसलों से बजट स्कूल प्रभावित हुए. उन्होंने कोरोना के समय लोगों की मदद की. उन्होंने आरोप लगाया कि इस आदेश से सरकार ने हमारे बच्चे चुरा लिए.
कुलभूषण शर्मा ने आगे कहा,
कोरोना के दौरान लेबर क्लास के यूपी और बिहार लौटने के बाद सरकारी स्कूलों का ड्रॉपआउट बहुत बढ़ गया था. करीब 12 लाख बच्चे स्कूल छोड़ चुके थे. इस आंकड़े को दुरुस्त करने के लिए सरकार ने इस तरह का आदेश जारी किया. टीचर्स को गांव में भेजकर सरकारी स्कूलों में दाखिले के लिए कहा गया. ताकि सरकारी बजट कम ना हो जाए. ये सरासर गलत है.
ड्रॉपआउट का क्या मामला है?
इन सबके बीच हरियाणा सरकार ने राज्य के प्राइवेट स्कूलों को अपनी प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) अपडेट करने के निर्देश दिए हैं. राज्य के प्राइवेट स्कूलों में पिछले साल 29 लाख स्टू़डेंट्स थे. इनमें से 17 लाख की ही सूचना MIS पर अपडेट है. लगभग 12 लाख विद्यार्थियों के बारे में जानकारी अपडेट की जानी बाकी है. सरकार का कहना है कि विद्यार्थियों की सही संख्या अपडेट नहीं किए जाने पर ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. इस वर्ष सरकारी स्कूलों में 23.60 लाख स्टू़डेंट्स ने दाखिला लिया है, जो पिछले साल के मुकाबले 1.60 लाख अधिक है.
इस बारे में हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवर पाल का कहना है कि 12 लाख छात्र MIS पोर्टल पर नहीं हैं. उन्होंने कहा कि किसी भी बच्चे के ड्रॉपआउट की कोई संभावना नहीं है. अब देखना होगा कि हाईकोर्ट के स्टे ऑर्डर के बाद हरियाणा सरकार क्या फैसला लेती है.