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डेल्टा के बाद अब डेल्टा प्लस वैरिएंट की पुष्टि. सरकार ने कहा चिन्ताजनक वैरिएंट नहीं

कोरोना वायरस का एक नया वैरिएंट ‘डेल्टा प्लस’ (Delta Plus) भी विकसित हो गया है. ‘डेल्टा’ वैरिएंट तो आपने सुना ही होगा, जिसे भारतीय वैरिएंट भी कहते हैं. क्योंकि ये पहली बार भारत में पाया गया था. भारत में दूसरी लहर के दौरान कोरोना वायरस के चपेट में आए लोग ज़्यादातर इसी वैरिएंट के शिकार हुए थे. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि डेल्टा वैरिएंट ही विकसित होकर डेल्टा प्लस बन गया है. लेकिन समाचार एजेंसी PTI के हवाले से बताएं तो सरकार ने कहा है कि अभी तक ये डेल्टा प्लस चिंताजनक वैरिएंट नहीं बना है, और सरकार इसे क़रीब से देख रही है.

तो आइए आपको इस वैरिएंट से जुड़ी अबतक मौजूद ज़रूरी जानकारी बताते हैं.

डेल्टा प्लस वैरिएंट, डेल्टा वैरिएंट यानी कि बी.1.617.2 स्ट्रेन के म्यूटेशन से बना है. म्यूटेशन का नाम K417N और हुआ वायरस के स्पाइकप्रोटीन में. यानी पुराने वाले वैरिएंट में थोड़े बदलाव हो गए, नया वाला सामने आ गया. यह सब बताना इस वजह से ज़रूरी है क्योंकि यही स्पाइक प्रोटीन है जिसकी मदद से वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करता है और हमें संक्रमित करता है. स्पाइक प्रोटीन नहीं समझे तो कोरोनावायरस का वो चित्र याद करिए, जिसमें वायरस के चारों ओर कांटेदार गोल-गोल खोल लगा होता है. उसे ही कहते हैं स्पाइक प्रोटीन. K417N म्यूटेशन के कारण ही ये वायरस हमरे इम्यून सिस्टम यानी कि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक सिस्टम को चकमा देने मे कामयाब होता है.

अब इस वायरस पर कमेंट करते हुए नीति आयोग ने  14 जून को कहा कि ‘डेल्टा प्लस’ वैरिएंट इस साल मार्च से ही हमारे बीच मौजूद है. हालांकि, ऐसा कहते हुए आयोग ने बताया कि ये अभी चिंता का कारण नहीं है. नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल ने कहा,

“इसकी उपस्थिति का पता लगाया गया था और ग्लोबल डेटा सिस्टम को इसकी जानकारी दे दी गई है.”

अमरीका में डेल्टा प्लस के 6% मामले 

इंग्लैंड की स्वास्थ्य एजेन्सी पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के मुताबिक़ K417N म्यूटेशन के साथ अब तक 63 प्रकार के अलग-अलग वैरिएंट की पहचान की गई है, जिनमें से 6 भारतीय वैरिएंट हैं. पूरे यूनाइटेड किंडम (UK) में ‘डेल्टा प्लस’ वैरिएंट के कुल 36 मामले हैं और वहीं अगर अमरीका की बात करें तो वहां 6 प्रतिशत मामले डेल्टा प्लस वैरिएंट के हैं. स्वास्थ्य एजेन्सी ने ये भी दावा किया है कि UK में दो मामले ऐसे दर्ज किए गए जिसमें दूसरी वैक्सीन लेने के बाद 14 दिन से ज़्यादा बीत चुका था. वैक्सीन की इस वैरिएंट से मुक़ाबला करने की ताक़त पर भी सवाल उठता है.

हालांकि, दिल्ली के CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी(IGIB) के निदेशक अनुराग अग्रवाल ऐसा नहीं मानते. उन्होंने न्यूज़ चैनल एनडीटीवी को बताया कि क्योंकि इस नए वैरिएंट के मामले अभी कम हैं और अभी तक बीमारी की गंभीरता के बारे में कोई संकेत मिले हैं ऐसे में यह कोई चिंता का विषय नहीं है. उन्होंने आगे ये भी बताया कि इस वैरिएंट की जांच करने के लिए दोनों वैक्सीन लिए लोगों के प्लाज्मा को इस वैरिएंट के खिलाफ परीक्षण करना होगा ताकि ये पता लगाया जा सके कि क्या वैक्सीन इस वैरिएंट के ख़िलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता देती है या नहीं.

CSIR-IGIB के और वैज्ञानिक विनोद स्कारिया के मुताबिक़ इस समय यूरोप, भारत के मुक़ाबिले अमेरिका और दूसरे एशियाई देशों में डेल्टा प्लस वैरिएंट का ज़्यादा संक्रमण फैला है. उन्होंने ये भी कहा कि विदेश यात्राएं भी बंद थीं, ऐसे में ये वैरिएंट कितना फैला है इसका फ़ौरन अनुमान लगाना मूर्खतापूर्ण होगा.

ऐसे में हम क्या करें? हम हर स्ट्रेन और वैरिएंट को ख़तरनाक मानकर चलें. कोरोना से बचाव के जो तरीक़े हैं, उनका पालन करते रहें.

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