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गंगा किनारे दफन शवों को प्रशासन क्यों कर रहा दाह संस्कार

प्रयागराज में गंगा नदी का जलस्तर बढ़ने के साथ ही पिछले दिनों रेत में दबाए गए शव बाहर दिखने लगे हैं.

नगर निगम के अधिकारी इन लावारिस शवों का हिंदू रीति-रिवाज के साथ दाह संस्कार कर रहे हैं. अब तक 150 से भी ज़्यादा शवों का दाह संस्कार किया जा चुका है.

प्रयागराज ज़िले के फाफामऊ इलाक़े में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान गंगा किनारे रेत में बड़ी संख्या में शव दफ़नाए गए थे. पिछले कई दिनों से हो रही बरसात और गंगा नदी में छोड़े गए पानी की वजह से जलस्तर बढ़ने लगा तो ये शव पानी में तैरने लगे या फिर रेत के हट जाने से बाहर दिखने लगे.

प्रयागराज नगर निगम ने इन शवों का दाह संस्कार कराने का फ़ैसला लिया है.

नगर निगम के ज़ोनल अधिकारी नीरज सिंह कहते हैं कि अब तक इस तरह के डेढ़ सौ से भी ज़्यादा शवों का दाह संस्कार किया जा चुका है.

बीबीसी से बातचीत में नीरज सिंह कहते हैं, “गंगा किनारे बहुत ज़्यादा शव दफ़न कर दिए गए थे. जलस्तर बढ़ने पर बहुत ज़्यादा कटान हुआ इसलिए ये शव बाहर आ गए. बीस दिनों के अंतराल में हमने 155 शवों का अंतिम संस्कार कराया है.”

बाहर आए शवों का ही दाह संस्कार

“कोरोना त्रासदी के दौरान यहां तमाम ऐसे शव आए जो कोरोना संक्रमित मरीज़ों के थे लेकिन उनके परिजन ने उनकी कोई ख़बर नहीं ली और एंबुलेंस के ड्राइवर यहां लाकर शव ऐसे ही छोड़ गए. हमने उस समय भी ऐसे दस से ज़्यादा शवों के अंतिम संस्कार कराए थे.”

नीरज सिंह बताते हैं कि दफ़न किए गए शवों को ख़ुद बाहर नहीं निकाला गया, बल्कि कटान की वजह से जो शव बाहर आ गए थे, उन्हीं का दाह संस्कार कराया गया है.

वो बताते हैं, “हमने उन शवों का संस्कार किया जो पूरा दिख जाता था. इसके लिए हम लोगों को घंटों इंतज़ार भी करना पड़ा. हमने सावधानी बरती. हमारी जानकारी में कोई शव बहने नहीं पाया. शव या तो ज़मीन में दफ़न हैं या फिर उन्हें हमने बाहर निकाल कर उनका अंतिम संस्कार कराया.”

इस साल अप्रैल-मई के बीच में कोरोना की वजह से बड़ी संख्या में मौतें हुईं. ग्रामीण इलाक़ों में भी कोरोना जैसे लक्षणों की वजह से मौतें हुईं लेकिन चूंकि इनके परीक्षण नहीं हुए थे, इसलिए यह पता भी नहीं चल सका कि इनकी मौत की वजह कोविड संक्रमण थी या फिर कुछ और.

प्रयागराज और आस-पास के ग्रामीण इलाक़ों में हुई इन मौतों की वजह से लोगों ने श्रृंगवेरपुर, फाफामऊ, छतनाग जैसी जगहों पर शवों को गंगा किनारे दफ़ना दिया था.

प्रयागराज में श्रृंगवेरपुर और फाफामऊ में गंगा नदी में जलस्तर बढ़ने से कछारी इलाक़ा डूबने लगा है जिसकी वजह से दफ़न किए गए शवों के ऊपर से पानी बहने लगा.

बुरा है हाल

फाफामऊ के रहने वाले नाविक मैकूलाल बताते हैं कि उन्होंने कई शवों को नदी में तैरते हुए देखा है.

मैकूलाल कहते हैं, “तेज़ धारा होने के कारण गंगा अपने साथ रेत भी बहा ले जा रही है. तेज़ बहाव के कारण किनारे का बड़ा हिस्सा कटकर गंगा में समा जा रहा है. रेत में दफ़न शवों का हाल बहुत बुरा है. शवों के अलग-अलग अंग कई बार दिख जाते हैं. नाव चलाते समय हम लोगों को यह दृश्य रोज़ दिख रहा है.”

नगर निगम के अधिकारियों के मुताबिक़, पहले तो हर दिन चार या पाँच शव ही मिल रहे थे लेकिन बाद में एक-एक दिन में 30 से भी ज़्यादा शवों का दाह संस्कार कराना पड़ा.

हालांकि दो दिन से शवों की संख्या फिर कम हो गई है. ज़ोनल अधिकारी नीरज सिंह कहते हैं कि शवों का अंतिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाज से कराया जा रहा है.

उनके मुताबिक़, “हम हर एक शव की अलग-अलग चिता सजा रहे हैं. प्रत्येक शव को देसी घी का अर्पण होता है, चंदन का अर्पण होता है और कपूर से उनको मुखाग्नि दी जा रही है.”

नीरज सिंह बताते हैं कि एक शव के अंतिम संस्कार पर क़रीब चार हज़ार रुपये का ख़र्च आता है.

स्थानीय लोगों के मुताबिक़, शव अक्सर नदी में तैरते दिख जाते हैं जिसकी वजह से गंगा में स्नान करने वाले लोग भी काफ़ी कम आ रहे हैं.

गंगा किनारे रसूलाबाद के रहने वाले दीपक मौर्य कहते हैं, “जब से ये शव दफ़नाए गए हैं, गंगा किनारे जाने लायक़ भी नहीं रहा है. इतनी बदबू आती है कि दो मिनट रुकना मुश्किल हो जाता है. अब जब पानी बढ़ रहा है तो शव बाहर आ रहे हैं क्योंकि बालू में ज़्यादा अंदर तो इन्हें दफ़नाया नहीं गया है. ज़्यादातर शव तो बस गेरुए कपड़े में लपेटकर रेत के ऊपर ही रख दिए गए थे.”

संक्रमण फैलने का डर

दफ़न किए गए शवों की यह स्थिति देखकर आस-पास के इलाक़ों में रहने वाले लोग डरे हुए भी हैं क्योंकि बरसात में इनकी वजह से संक्रमण फैलने और गंगा के पानी के भी संक्रमित होने की आशंका है.

पर्यावरणविद और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर एनबी सिंह कहते हैं, “यह तो होना ही था. डेड बॉडी को डिकंपोज़ (नष्ट) होने में यानी उन्हें गलने में एक साल का समय लगता है. यहां डेड बॉडी के साथ कफ़न और ऐसी तमाम चीज़ें भी हैं. बरसात में ये सब चीज़ें इसी पानी में सड़ेंगी और इन सबका असर पर्यावरण पर होगा.”

प्रयागराज नगर निगम की मेयर अभिलाषा गुप्‍ता नंदी कहती हैं कि गंगा किनारे जहां भी शव दिख रहे हैं, नगर निगम की ओर से उनका अंतिम संस्कार कराया जा रहा है.

अभिलाषा गुप्ता कहती हैं, “मिट्टी में शव जल्दी डिकम्‍पोज़ हो जाते हैं, लेकिन रेत में नहीं हो पाते. कोरोना काल में बड़ी संख्या में लोग शवों को यहां दफ़ना गए. लेकिन उसके बाद हमें जो भी लावारिस शव दिखा, हम उसका अंतिम संस्‍कार करा रहे हैं.”

अप्रैल और मई के महीने में गंगा किनारे बड़ी संख्या में शवों के दफ़नाने को लेकर काफ़ी हँगामा हुआ था.

प्रशासन ने पहले तो इसे परंपरा बताते हुए मामले को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की लेकिन बाद में शवों के ऊपर पड़ी लाल चुनरी और रामनामी जैसे वस्त्र हटाने और शवों को जेसीबी से हटाने की कोशिश की.

विवाद बढ़ने के बाद प्रयागराज के तत्कालीन ज़िलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी ने इसकी जाँच के लिए एक कमेटी बना दी.

इस बीच, ज़िलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी का तबादला भी हो गया लेकिन जाँच रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है.

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