Wednesday, March 19, 2025
28.1 C
Delhi
Wednesday, March 19, 2025
- Advertisement -corhaz 3

उत्तर प्रदेश, बिहार में बहती हुई लाशें आखिर आ कहां से रही हैं ?

बिहार और उत्तरप्रदेश की नदियों में लाशों का मिलना लगातार जारी है. बिहार के बक्सर के चौसा प्रखंड के चौसा श्मशान घाट पर 71 लाशें गंगा नदी में तैरती हुई मिली थी जिसके बाद से ही कई सवाल उठ रहे है. बीबीसी ने इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की.

सवाल: ये लाशें कहां से आईं हैं ?

जवाब: बक्सर प्रशासन का दावा है कि ये लाशें उत्तरप्रदेश से बहकर आईं हैं. हालांकि कई स्थानीय लोग जिनसे बीबीसी ने बातचीत की, उनका कहना है कि स्थानीय लोग ही शव के अंतिम संस्कार के महंगा होने और कोरोना के डर से लाश फेंक कर जा रहे हैं.

बीबीसी ने इस संबंध में नदी विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र से बात की. उन्होंने कहा, “ये कह पाना मुश्किल है कि लाशें कहां से आई. अभी गंगा में पानी कम है, यही अगर बरसात का वक्त होता तो लाशें बह गईं होतीं और किसी को पता भी नहीं चलता.”

“लेकिन बक्सर प्रशासन जो श्मशान घाट पर नदी के कर्व (घुमाव) की बात कर रहा है, उसमें दम है. नदी कर्व के बाहरी किनारे में इरोज़न (किनारे को काटती) करती है और अंदरूनी किनारे पर डिपोजिट (मिट्टी जमा होना) करती है. ये नदी की स्वाभाविक प्रवृत्ति है. अगर लाश या बहती हुई कोई चीज़ अंदरूनी सर्किल में होगी तो नदी लाश को बाहर की तरफ डिपॉज़िट करेगी ठीक मिट्टी की तरह.”

सवाल : क्या लाशों को प्रवाहित करने की परंपरा है?

जवाब: बक्सर के चौसा प्रखंड से गंगा में बहती लाशों का मामला सामने आने के बाद बक्सर प्रशासन की तरफ से 10 मई को ये बयान आया कि हमारे यहां (बिहार में) लाशों को प्रवाहित करने की परंपरा नहीं है.

इस संबंध में हिन्दू कर्मकांड के जानकार प्रभंजन भारद्वाज बताते हैं, ” बिहार में अधिकांश जगह शव को जलाया जाता है. लेकिन सांप के काटने या विषम बीमारी जैसे कुष्ठ रोग से हुई मौत में लाश को घड़े में पानी भरकर या केले के थंभ (तना) के साथ नदी के बीचोबीच प्रवाहित किया जाता है.”

वो बताते है कि उत्तरप्रदेश के सैकड़ों गांव में लाश प्रवाहित करने की परंपरा है. वो कहते हैं, “कर्मनाशा नदी बिहार और यूपी के बीच बहती है. कर्मनाशा का जो हिस्सा यूपी की तरफ है, वहां सैकड़ों गांवों में शवों को मुखाग्नि देकर प्रवाहित किया जाता है.”

सवाल: यदिस्थानीय लोग मजबूरी में शव प्रवाहित कर रहे है, तो इसकी वजह क्या है?

जवाब: बक्सर के विधायक संजय कुमार तिवारी कहते है, ” पहली बात तो ये लाशें यूपी से आईं हैं. अब लाशें यूपी से बिहार में ना आ सकें इसके लिए हमने दो जगह नदी में बड़ा जाल लगवा दिया है.”

वो मानते है कि दाह संस्कार बहुत महंगी प्रक्रिया बन गई है. उनके मुताबिक, “लकड़ी और दाह संस्कार से संबंधित सामान के दाम बहुत बढ़ गए है. पहले जो लकड़ी 250 रुपये मन आती थी उसका दाम 400 रूपये मन हो गया. पुआल, गोइठा (उपले), लकड़ी सब का ये हाल है कि उतनी सप्लाई ही नहीं हो पा रही है. जबकि कोविड और नॉन कोविड मरीज़ों की मौत बहुत ज्यादा संख्या में हो रही है. लेकिन हमने अस्पताल और श्मशान गृहों में किसी तरह के भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी नहीं छोड़ी है.”

सवाल: क्या इससे नदी के पानी पर असर पड़ेगा ? साथ ही जो लोग इस पानी का इस्तेमाल करेंगें, उनको क्या समस्याएं आ सकती है?

जवाब: दिनेश मिश्र कहते है, “अगर ये कोविड संक्रमित लोगों की लाशें है तो नदी के पानी पर तो बेशक असर पड़ेगा. पानी मर्ज़ वगैरह अपने साथ ही लेकर चलेगा. लाशों की संख्या जितनी दिख रही है, उस हिसाब से तो इस पानी का ट्रीटमेंट भी असंभव सी बात है. सवाल ये भी है कि क्या प्रशासन ने इन जगहों का पानी लेकर कोई जांच की है ? “

वहीं स्वास्थ्य विशेषज्ञ और आईएमए बिहार के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट डॉक्टर अजय कुमार कहते हैं, “अभी नदी के पानी को किसी भी काम के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ना तो अपने लिए और ना ही जानवरों के लिए. मुंह, नाक, कान से कोविड का वायरस अंदर जाता है. अगर लोग इस पानी का इस्तेमाल करेंगें तो लोगों को बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के अलावा कोविड तक हो सकता है. ये जानलेवा साबित हो सकता है. “

सवाल: प्रशासन को अब क्या करना चाहिए?

जवाब: दिनेश मिश्र कहते है,” सबसे पहले तो ये एडवाइज़री जारी करनी चाहिए कि आमलोग पानी का सीधा उपयोग नहीं करें. नहाने आदि के लिए उसका इस्तेमाल नहीं करें. तुरंत पानी की टेस्टिंग होनी चाहिए. साथ ही जानवरों को भी नदी में नहलाने पर पाबंदी लगनी चाहिए क्योंकि अगर जानवरों में किसी तरह को रोग आया और उनकी मृत्यु हुई तो मुश्किलें बहुत बढ़ जाएगी.”

सवाल: क्या इन घटनाओं का लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ेगा?

जवाब: इसका जवाब मनोवेद पत्रिका के संपादक और मनोचिकित्सक डॉ विनय कुमार देते हुए कहते है, “नदी में जब मौत के अवशेष तैरने लगें तो ये बहुत भयानक स्थिति है और इससे मनुष्य में डर का भाव आएगा. उसे घबराहट होगी और मौत आस -पास महसूस होगी. ऐसी घटनाएं यदि बार-बार होंगी तो समाज में उदासी के साथ निष्ठुरता आती है. किसी समाज में जब निष्ठुरता आ जाए तो फिर वहां कोई किसी की मदद के लिए नहीं उठता है.”

वो कहते है कि इस पूरे मामले में सबसे अहम भूमिका स्थानीय स्तर के जनप्रतिनिधियों की है. पंचायत स्तर पर जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि उन्हें ऐसी किसी भी लाश के बारे में पता चले तो वो उसका तुरंत दाह संस्कार करवाएं.

सवाल: क्या बिहार-यूपी की नदियों में इस तरह से दिख रही लाशें, इन दोनों राज्यों की स्वास्थ्य व्यवस्था और सामाजिक सूचकांकों पर फिसड्डी होने का भी सूचक है?

जवाब: इस सवाल पर हमने बात की वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर राय से जो मूल रूप से बलिया के रहने वाले हैं और बिहार की राजधानी पटना में राष्ट्रीय सहारा अखबार के संपादक भी रह चुके है.

उन्होने कहा, “बिहार में हालात बहुत ही दयनीय है. यूपी उससे कुछ बेहतर स्थिति में है लेकिन ये आपको लखनऊ, एनसीआर के इलाके, कानपुर, इलाहाबाद में ही दिखेगा. बाकी सब जगह यूपी में भी बिहार जैसे ही हालत है. इन दोनों ही राज्यों में शिक्षा-स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ साथ पूरे सरकारी तंत्र के निजीकरण के चलते सरकारी नियंत्रण लगभग खत्म हो गया है. यहीं वजह है कि अस्पतालों, स्कूल से लेकर श्मशान गृहों तक में लूट होती दिख रही है.”

वो कहते है, “कोरोना के वक्त में दोनों ही राज्यों में ग्रामीण स्तर पर टेस्टिंग का बुरा हाल है. ऐसे में लोग ठीक से इलाज या जांच नहीं करवाते और मृत्यु हो जाने पर उनके शवों को कोविड के डर और कमज़ोर होती आर्थिक स्थिति के चलते यूं ही फेंक दे रहे हैं. दोनों ही राज्य अपनी कल्याणकारी भूमिका निभाने की सख्त जरूरत है.”

More articles

- Advertisement -corhaz 300

Latest article

Trending