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अस्पताल लगातार लगा रहे मदद की गुहार, आपातकालीन विदेशी मदद हो रही गायब

पिछले एक महीने से भारत के कोरोना संकट ने भयावह शक्ल अख़्तियार कर ली है. संक्रमण की दूसरी घातक लहर के बढ़ने के साथ ही दुनिया भर के तमाम देशों की ओर से भारत को भेजी जाने वाली इमरजेंसी मेडिकल सप्लाई की रफ़्तार भी बढ़ गई है.

पिछले सप्ताह की शुरुआत से ही ब्रिटेन और अमेरिका से विमानों में भर कर वेंटिलेटर, दवाइयां और ऑक्सीजन उपकरण भारत पहुँचने लगे थे. रविवार तक अकेले दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 25 विमानों में भर कर 300 टन राहत सामग्री पहुँच चुकी थी.

लेकिन जैसे-जैसे भारत में कोरोना संक्रमण के मामले रिकार्ड स्तर को छूने की ओर बढ़ रहे हैं, विदेश से मिल रही मेडिकल मदद को ज़रूरतमंदों तक पहुँचाने से जुड़ी चिंताएँ भी बढ़ती जा रही हैं.

पिछले कुछ दिनों के दौरान अस्पताल लगातार ज़्यादा मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन मेडिकल सामानों की खेप हवाईअड्डों पर पड़ी रही. दिल्ली के अधिकारियों ने स्थानीय मीडिया को बताया कि मंगलवार शाम तक इन सामानों को बाँटा नहीं जा सका था. यानी आपातकालीन मदद की पहली खेप को आए एक सप्ताह से ज़्यादा हो गए थे लेकिन ये ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुँच सकी थी.

केंद्र सरकार ने इस बात से साफ़ इनकार किया कि विदेश से आई इस मदद को ज़रूरतमंदों को पहुँचाने में देर हुई. मंगलवार को उसने एक एक बयान जारी कर कहा, “इस सप्लाई को उसने ‘सुचारू और व्यवस्थित तरीक़े” से बाँटना शुरू कर दिया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि वह हवाईअड्डे से इन ”सामानों की क्लीयरिंग और उन्हें सही जगह” पर पहुँचाने के लिए रात-दिन काम कर रहा है.

लेकिन ज़मीनी हालात कुछ हैं. कोविड से सबसे ज़्यादा प्रभावित कुछ राज्यों के अधिकारियों ने बीबीसी से कहा कि उन्हें अब तक बाहर से आई इस मेडिकल मदद की कोई सप्लाई नहीं मिली है.

इस सप्ताह की शुरुआत में केरल में कोरोना के रिकार्ड 37,190 मामले आए. लेकिन राज्य के स्वास्थ्य सचिव डॉ. राजन खोब्रागड़े ने बीबीसी को बताया कि केरल को बुधवार तक इस मदद कोई खेप नहीं मिली थी.

केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने अलग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ़ोन करके तुरंत आयातित ऑक्सीजन खेप भेजने को कहा. देश में मेडिकल ऑक्सीजन की भारी ज़रूरत को देखते हुए उन्होंने पीएम से ‘आपात’ मदद की माँग की थी.

बुधवार को उन्होंने पीएम को लिखी खुली चिट्ठी में कहा कि केरल को प्राथमिकता के आधार पर ऑक्सीजन उपकरण मुहैया कराए जाने चाहिए क्योंकि उनका राज्य देश के सबसे ज़्यादा एक्टिव कोविड केस वाले राज्यों में शुमार है.

मेडिकल मदद आख़िर जा कहाँ रही है?

देश के हेल्थकेयर सिस्टम से जुडे कुछ अधिकारियों के मुताबिक़ उन्हें नहीं मालूम कि विदेशी मदद की यह खेप उन्हें कब और कैसे मिलेगी?

इस बारे में केंद्र सरकार की ओर से बहुत कम जानकारी दी गई है और कुछ मामलों में तो कुछ भी नहीं बताया गया है.

हेल्थकेयर फ़ेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. हर्ष महाजन ने कहा, “यह मदद कहाँ बाँटी जा रही है, इस बारे में अभी तक कोई सूचना नहीं है.”

हेल्थकेयर फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया देश के कुछ सबसे बड़े अस्पतालों का प्रतिनिधित्व करता है.

उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि लोगों को इस बारे में कुछ पता ही नहीं है. मैंने दो-तीन जगह इस बारे में पता करने की कोशिश लेकिन नाकाम रहा. मदद कहाँ मिल रही है, इस बारे में अभी तक कोई “स्पष्ट जानकारी” नहीं है.”

इस संकट से जूझने उतरे कुछ एनजीओ भी इस मदद को लेकर अनजान हैं. उनका कहना है कि इस सिलसिले में कोई सूचना न मिल पाने से वे हताश हैं.

ऑक्सफ़ैम इंडिया के प्रोग्राम एंड एडवोकेसी के डायरेक्टर पंकज आनंद ने बीबीसी से कहा, “मुझे नहीं लगता कि किसी को इस बारे में जानकारी है कि यह मदद आख़िर जा कहाँ रही है. किसी भी वेबसाइट पर ऐसा कोई ट्रैकर मौजूद नहीं है, जो आपका इसका पता दे सके.”

इस राहत सामग्री के बाँटने को लेकर नदारद सूचनाओं पर मदद करने वाले देशों में भी सवाल उठ रहे हैं. मददगार देशों में यह सवाल बार-बार उठ रहा है कि आख़िर मेडिकल मदद की यह खेप जा कहाँ रही है.

शुक्रवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक ब्रीफ़िंग में भी यह मुद्दा उठाया गया. एक पत्रकार ने पूछा कि भारत को भेजे जा रहे अमेरिकी टैक्सपेयर्स के पैसे की जवाबदेही कौन लेगा. क्या अमेरिकी सरकार यह पता कर रही है कि भारत को भेजी जा रही यह मेडिकल मदद कहाँ जा रही है?

इसके जवाब में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “हम आपको यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि अमेरिका इस संकट के दौरान अपने पार्टनर भारत का ख्याल रहने के लिए प्रतिबद्ध है.”

बीबसी ने इस मुद्दे पर ब्रिटेन के फ़ॉरेन, कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफ़िस (FCDO) से बात की. बीबीसी ने पूछा कि क्या उसके पास इस बात की कोई जानकारी है कि ब्रिटेन की ओर से भेजे गए 1000 वेंटिलेंटर्स समेत तमाम मेडिकल मदद भारत में कहाँ बाँटी गई.

इसके जवाब में फ़ॉरन, कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस ने कहा, “भारत को भेजे जा रहे मेडिकल उपकरणों को यथासंभव कारगर तरीक़े से पहुँचाने के लिए ब्रिटेन, इंडियन रेड क्रॉस और भारत सरकार के साथ काम करता आ रहा है.”

दफ़्तर ने कहा, “यह भारत सरकार तय करेगी कि ब्रिटेन की ओर से दी जा रही मेडिकल मदद कहाँ भेजी जाएगी और इसे बाँटे जाने की प्रक्रिया क्या होगी.”

इस बीच भारत में विपक्ष के नेताओं ने सरकार से मेडिकल मदद को बाँटने के तौर-तरीक़ों के बारे में जानकारी मांगनी शुरू कर दी है.

कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, “हम भारत सरकार से अनुरोध और मांग करते हैं कि वह हर भारतीय को बताए कि ये मदद कहाँ से आ रही है और कहाँ जा रही है? जनता को यह बात बताना सरकार का दायित्व बनता है.”

‘सुचारू और व्यवस्थित तरीक़ा’

मेडिकल मदद की इस सप्लाई को राज्यों तक पहुँचाने की इस ‘सुचारू व्यवस्था’ को बनाने में केंद्र सरकार को सात दिन लग गए. ख़ुद केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह बात कही है.

एक प्रेस रिलीज़ में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि इस मदद को बांटने के लिए उसने 26 अप्रैल को तैयारी शुरू कर दी थी. मदद कैसे बाँटी जाए इसके लिए उसने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर यानी SOP 2 मई को जारी की. इसने यह नहीं बताया कि आख़िर मदद बाँटने की शुरुआत कब से हुई.

देश में मदद की खेप पहुँचने के बावजूद इसके वितरण की प्रक्रिया जटिल है. यह कई स्तरों से होकर गुज़रती है और इसमें तमाम मंत्रालय और बाहरी एजेंसियाँ शामिल होती हैं.

राहत सामग्री से भरे विमान भारत पहुँचते ही इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के हवाले हो जाते हैं.

सरकार के बयान के मुताबिक़ कस्टम विभाग से इसे निकालने की ज़िम्मेदारी इसी पर होती है. इसके बाद मदद की यह खेप एक दूसरी एजेंसी एचएलएल लाइफ़केयर के हवाले की जाती है. यह एजेंसी फिर इस सामान को अपने ज़िम्मे में लेकर इसे देश भर में भेजती है.

सरकार ने माना कि चूंकि यह सप्लाई अलग-अलग रूप में आती है इसलिए पहले उन्हें खोलना पड़ता और फिर री-पैक करना पड़ता है. इसके बाद ही वे निर्धारित जगह पहुँचाई जाती है. इससे राहत सामग्री पहुँचाने में देरी हो जाती है.

सरकार की ओर से कहा गया, “मेडिकल मदद के तौर पर जो सामान बाहर से आ रहा है, उसकी मात्रा और तादाद अलग-अलग है. वे एक बार नहीं आती है. अलग-अलग समय में अलग-अलग संख्या में आती है. कई बार ये सामान लिस्ट से मेल नहीं खाते. ये फिर संख्या या मात्रा में अंतर होता है. एयरपोर्ट पर इनका हिसाब लगाना पड़ता है.”

एक बार सामान की दोबारा पैकिंग होने के बाद वे उन इलाक़ों में पहुँचा दिए जाते हैं जहाँ गंभीर मरीज़ों का दबाव सबसे ज़्यादा है. सबसे पहले सामान वहाँ भेजा जाता है, जहाँ इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.”

‘रात-दिन हो रहा है काम’

केंद्र सरकार ने दावा किया है कि लॉजिस्टिक्स की चुनौतियों के वह इन सप्लाई को सबसे ज़्यादा ज़रूरत वाली जगहों पर पहुँचाने के लिए रात-दिन काम कर रही है. सरकार के मुताबिक़ मंगलवार की शाम तक यह राहत सामग्री 31 राज्यों की 38 संस्थानों तक पहुँचाई जा चुकी थी.

कोरोनो से सबसे ज़्यादा घिरे राज्यों में से एक पंजाब के एक अधिकारी ने बुधवार को बीबीसी को बताया कि राज्य को 100 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स और जीवनरक्षक दवा रेमेडेसिविर की 2500 डोज़ मिली है.

चेन्नई के कस्टम अथॉरिटी ने ट्विटर के ज़रिए जानकारी दी कि मंगलवर को एयरफ़ोर्स ने ब्रिटेन से चेन्नई तक 450 ऑक्सीजन सिलेंडरों की “पहली खेप” एयरलिफ्ट की.

सरकार के एक मंत्री ने मंगलवार को बताया कि हॉन्गकॉन्ग से विमान से 1088 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स लाए गए थे. इनमें से 738 दिल्ली में रख लिए गए और बाक़ी 350 मुंबई भेज दिए गए. इस बीच देश के अलग-अलग हिस्सों से ट्रेनों से मेडिकल ऑक्सीजन भर कर दिल्ली पहुँचाई जा रही है. इन ट्रेनों का नाम “ऑक्सीजन एक्सप्रेस” रखा गया है.

“ऑक्सीजन बेहद ज़रूरी है”

इन कोशिशों बावजूद भारत के अस्पतालों में अभी मेडिकल सप्लाई की भारी कमी है. सबसे ज़्यादा क़िल्लत मेडिकल ऑक्सीजन की ही रही है.

देश में हर दिन कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं.

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ बृहस्पतिवार को 4,12,262 कोरोना के नए केस सामने आए. यह अब तक रिकार्ड है. उस दिन देश भर कोरोना संक्रमण से 3980 लोगों की मौत हो गई. पिछले सप्ताह दुनिया के सारे कोविड संक्रमितों से लगभग आधे भारत में थे. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़ कोविड से हो रही दुनिया की कुल मौतों की चौथाई मौतें भारत में हो रही हैं.

इसके बावजूद कुछ हेल्थकेयर प्रोफ़ेशनल कह रहे हैं उन्हें इस समय तुरंत विदेशी मदद की नहीं बल्कि अस्पताल में ही मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट लगाने की ज़रूरत है.

डॉ. हर्ष महाजन कहते हैं, “इस वक़्त हमारी समस्या सिर्फ़ एक है. और वह है मेडिकल ऑक्सीजन की कमी. विदेश से मदद आए या न आए, इससे ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता. “

वह कहते हैं कि ऑक्सीजन का उत्पादन हालात बदल देगा. अभी सबसे ज़्यादा ज़रूरत इसी की है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक ट्वीट कर कहा, “दिल्ली में दो नए ऑक्सीजन प्लांट लगा गए हैं. ये हर मिनट पर 1000 लीटर ऑक्सीजन का प्रोडक्शन कर रहे हैं. बुधवार शाम से ये दिल्ली के हज़ारों कोविड मरीजों के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई शुरू कर देंगे.

लेकिन कोविड से लड़ने के लिए हेल्थकेयर इमरजेंसी के अग्रिम मोर्चे पर तैनात हेल्थकर्मियों के लिए मरीज़ों को बचाने के लिए ज़रूरी मदद का बेसब्री से इंतज़ार है.

डॉ. महाजन कहते हैं, “हम पर भारी दबाव है. कोरोना की इस लहर ने हम पर ज़बरदस्त वार किया है. ऐसा लगता है कि कोरोना की यह लहर किसी विमान की तरह उड़ान भरते हुए आसमान की ओर जा रही है.”

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