लेखक: रोहित शेट्टी , निर्देशक: रोहित शेट्टी, कलाकार :रोहित शेट्टी ,किशोर ,अच्युत कुमार आदि, अवधि: 2 घंटा 30 मिनट, यूए सर्टिफिकेट, रेटिंग:9/10
कांतारा कन्नड़ में 30 सितंबर को रिलीज हुई साल की महत्वपूर्ण फिल्म है। महत्वपूर्ण इसलिए कि मात्र 19 करोड़ के सीमित बजट में बनी इस फिल्म को लोगों ने इतना अधिक पसंद किया कि आनन-फानन में निर्माताओं को इसके डब्ड वर्जन निकालने पड़े । हिंदी में डब होकर फिल्म 14 अक्टूबर को रिलीज की गई और तब से अब तक ताबड़तोड़ कमाई कर रही है। फिल्म 100 करोड़ पार कर चुकी है और जिस तरह की फिल्म है इसका ग्राफ ऊपर ही जाएगा। कांतारा लीक से हटकर बनाई गई अपनी ही तरह की फिल्म है ,जो की बेजोड़ है। कांतारा का शाब्दिक अर्थ होता है “बीहड़ जंगल”
सबसे पहले बात फिल्म की कहानी की, जो डेढ़ सौ साल पहले घटित हुई मिथकीय कहानी पर केंद्रित है। जिसमें एक संपन्न राजा शांति की तलाश में जंगल में रहने वाली ग्रामीण जनजाति से उनके देवता( मूर्ति) के बदले में उन्हें सौ एकड़ जमीन दान करता है। कालांतर में उसके वंशज गांव के लोगों से अपनी अपनी जमीन वापस हथियाना चाहते हैं किंतु ग्रामीणों की देव में आस्था के चलते सफल नहीं हो पाते। इससे ज्यादा इसकी कहानी की बारे में बताना फिल्म के बारे में अन्याय होगा।
जहां तक बात अभिनय की तो सभी कलाकारों ने उम्दा काम किया है किंतु निश्चित रूप से यह फिल्म ऋषभ शेट्टी की फिल्म है। लेखक निर्देशक की भूमिका संभालने के साथ उन्होंने जो अभूतपूर्व अभिनय किया है वह लार्जर दैन लाइफ है।वे शिवा के किरदार में इतना गहरे उतरे हैं कि उन्होंने उसे जीवंत कर दिया है। फिल्म के कई दृश्य रोमांच पैदा करते हैं,कुछ हंसाते हैं तो कुछ चौंकाते भी हैं। जनजातीय संस्कृति, नृत्य ,भोजन,जीवन को फिल्म बेहद करीब से और वास्तविकता से दिखाती है। जंगल और जमीन को बचाने के लिए जंगली ग्रामीणों का संघर्ष दिल को छू जाता है ।फिल्म के गीत दृश्यों के अनुकूल हैं और बैकग्राउंड संगीत बढ़िया है। फिल्म कई श्रेणियों में प्रतिष्ठित पुरस्कार जीतने का सामर्थ्य रखती है।
सब कुछ बेहतरीन होने के बावजूद इसका सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है पर्यावरण संरक्षण पर इसका संदेश। फिल्म बेहद सहज ता और खूबसूरती से उसे दर्शकों तक पहुंचाती है। बिना किसी लंबे चौड़े भाषण और लाग लपेट के फिल्म अपने सशक्त कथानक के बल पर यह जताती है कि जंगल और प्राकृतिक संसाधनों पर सबसे पहला हक वहां रहने वालों और उनका ध्यान रखने वालों का है क्योंकि जंगल ही उनका देव है उनकी आस्था है। यदि यह कहा जाए कि यह फिल्म साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है तो अतिशयोक्ति न होगी किंतु इसका पूर्ण आनंद लेने के लिए इसका सिनेमैटिक अनुभव अवश्य लें।